दिलावर अली ‘आज़र’ की शायरी से गुज़रते हुए आधुनिक उर्दू ग़ज़ल पर मेरा ईमान और पुख़्ता हो गया है,शे’र कहते तो बहुत से और भी हैं मगर शे’र को शे’र बनाना किसी किसी को ही आता है ये शायर मुझे चंद ही दूसरों के साथ अगली पंक्ति में खड़ा दिखाई देता है इसका लहजा दोषमुक्त और आत्मविश्वास का जज़्बा आश्चर्यजनक है,ये ग़ज़लें ताज़गी और तासीर का एक ऐसा झोंका है जिसने आसपास का सारा वातावरण सुगन्धित कर दिया है
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