हसीब सोज बदायूँ जैसे तहज़ीबी शहर के जहीन शायर है, मैने उनकी गजलें मुशायरों में भी सुनी हैं और उनकी किताब में भी पड़ी है, वह चलती-फिरती जिंदगी के शायर हैं और इस जिंदगी को वह चलती फिरती जुबान में बयान भी करते है, हसीब सोज की गजलों में जो आसमान है वह उनकी आँखों का देखा हुआ है, जो जमीन है वह उनके कदमों से नापी हुई है और जो मौसम है वह अपने वजूद में जिया हुआ हैइन गजलों का मर्कजी किरदार अकलियती (अल्पसंख्यक) और अक्सरियती (बहुसंख्यक) तकसीम से बड़ी हद तक पाक है, वह किरदार न हिन्दू है न मुसलमान है सिर्फ और सिर्फ इन्सान है और उनकी यही इंसानियत उनका हुस्न है
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