1996 था वो साल जब मेरे दादाजी ने मेरे हृदय में कविता का बीज अंकुरित किया था। वो पहली कविता थी जिसके बाद लगातार हिंदी साहित्य में मेरी रूचि बढ़ती ही गयी। इसकी वजह शायद घर में हिंदी किताबों का बहुतायत में होना भी हो सकती है, या मेरे बचपन का मेरे दादाजी की छत्रछाया में पलना या फिर बिहार जैसे साहित्य के धनी राज्य में मेरा जन्म।
खैर वजह चाहे जो भी रही हो, 2006 (जब मैं नौंवी कक्षा में पढता था) से लिखना शुरू किया था। तब बस जुगाड़ ही निहित था रचनाओं में, कभी शब्दों का तो कभी सोच का।
पर जैसे जैसे उम्र बढ़ती गयी, जीवन में अनुभवों का हिस्सा बढ़ता गया, कुछ उद्देश्यपूर्ण रचनाएँ करने लगा। प्रारम्भिक दौर में केवल कविताएँ लिखता था, फिर गीत लिखे, फिर छोटी छोटी शायरियां और अब कुछ लघु कथाएं भी लिख चूका हूँ।
2014 में जयपुर से यांत्रिकी अभियांत्रिकी (मैंकेनिकल इंजीनियरिंग) में स्नातक डिग्री लेने के बाद इनफ़ोसिस (मैंसूरु) में कार्यरत हूँ। लगभग ३ साल हो चुके हैं और इस दरमियाँ कई अच्छे मित्रों का सहयोग मिला जिसके बदौलत मेरे लिखे २ गीत और एक लघु चलचित्र (शार्ट मूवी) यूट्यूब पर प्रसारित हुए। “हिंदी साहित्य और हिंदी व्याकरण का रिश्ता”- ये वो ख़ास बात है जो कुछ भी लिखते वक़्त मेरे जेहन में रहती है। प्रकृति प्रेम और वीर रस के काव्यों ने मुझे सदैव ही मोहित किया है, और यही कोशिश रहती है कि इन शैलियों का उपयोग कर सकूँ।
अभी जीवन का एक चौथाई पड़ाव पूरा किया है,
बाकी तीन अभी बाकी हैं,
अभी तो उजाले की किरणे आयी हैं;
अभी तो, सारी रात बाकी है;
सीखना मनुष्य गुण है,
अभी बस लिख रहा हूँ,
पर सीखना सदैव जारी है;
-कुमार मोहित
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