परिचय के तौर पर अभी कुछ ऐसा किया नहीं जो ख़ुद के दम पर कमाया हो. . . नाम परिजनों द्वारा मिला तो उपनाम पैतृक परंपरा के अनुसार जोड़ा गया। विद्यालयी और महाविद्यालयी प्रागंण में माँ सरस्वती की अनुकम्पा से मुझे साहित्य में स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री पाने का सौभाग्य मिला।
दिल्ली में पली-बढ़ी हूँ परन्तु जड़ें उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र से जुडी हैं। व्यवसाय जगत में मेरे कार्य-क्षेत्र को ‘शिक्षण’ के नाम से जाना जाता है। लेखन से जुड़ाव कब से रहा यह स्पष्ट तो नहीं याद पर धुँधली यादें शायद विद्यालयी दिनों की याद दिलाती हैं जब कॉपियों के पिछले पन्नों पर मनोभाव उकेरा करती थी। मैं ताउम्र बस यूँ ही पढ़ना, सीखना और कुछ सार्थक सा लिख लेना चाहती हूँ। तमन्ना बस इतनी है –
“मेरी लेखनी मेरी पहचान बने
मेरे शब्द मेरी अभिव्यक्ति हों
जीवन तेरे विद्यालय में
मैं आजीवन साहित्यार्थी बनी रहूँ”
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