मेरा नाम समीर है, मैं दिल्ली से हूँ पर अभी पुणे रहता हूँ और मैं ‘अश्क़’ उपनाम से कविताएं कहता हूँ।
मुझे कविताएं शायद विरासत में ही मिली हैं, क्योंकि मेरे नानाजी श्री मूलचंद शर्मा ‘अलंकृत’ कवि थे।
अपनी याद में कभी उनसे रूबरू नहीं हुआ पर उनकी कविताओं से खुद को काफ़ी जुड़ा पाता हूँ। साहित्य से भी लगाव स्कूल के वक़्त से है। अक्सर सिलेबस में पूरे साल के लिए मिलने वाली हिंदी और अंग्रेजी की किताबें दो से तीन दिन में खत्म कर दिया करता था क्योंकि पढ़ना बहुत पसंद था। उसके अलावा घर में जो भी मैंगज़ीन या किताबें आती थी उन्हें में भी ख़त्म करके ही चैन मिलता।
इसी के ज़रिये प्रेमचंद, निराला, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान से नाता जुड़ा, इंटरनेट हाथ में आते ही पहले प्रेमचंद, फिर ग़ालिब, और एक एक करके इन्ही के साथ वक़्त काटने लगा, पढ़ते पढ़ते न जाने कब लिखने की आदत हुई पता नहीं चला। अपनी पहली कविता आज से नौ वर्ष पहले लिखी, पर कविताएं सुनाना अभी बीते वर्ष ही शुरू किया। और जब अपने ही जैसे कुछ और सीखने वाले लोगों से नाता जुड़ा तो ‘फ़ेबल डायरीज़’ की नींव पड़ी जो कि अब एक समूह है जहाँ हम आपस में एक साथ कवितायेँ लिखते हैं और उन्हें और बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं।
बीते वर्ष में काफी कुछ सीखने और अपनी कविताओं में उसे उतारने की कोशिश की। ऐसी ही एक कोशिश ये कुछ कविताएं हैं जो कि ख़त के रूप में हैं। आशा है आपको पसंद आएँगे।
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